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बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2723
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- हर्ष की सामरिक उपलब्धियों के परिप्रेक्ष्य में उसका मूल्यांकन कीजिए।

अथवा
हर्ष के शासन काल की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
हर्ष का सामरिक शक्तियों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
अथवा
एक सम्राट के रूप में हर्षवर्द्धन का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर-

आरम्भिक जीवन चरित्र - हर्षवर्द्धन का जन्म 590 ई. में प्रभाकरवर्द्धन तथा यशोगति के पुत्र के रूप में हुआ था। हर्षवर्द्धन का बड़ा भाई राज्यवर्द्धन तथा बहन का नाम राज्यश्री था। प्रभाकरवर्द्धन की मृत्यु के बाद राज्यवर्द्धन थानेश्वर की गद्दी पर बैठा। उसी समय गौड़नरेश पर आक्रमण कर ग्रहवर्मा की हत्या कर राज्यश्री को कैद में डाल दिया।

इस दुर्घटना की खबर सुनकर राज्यवर्द्धन कन्नौज की सुरक्षा के लिए आगे बढ़ा। उसने देवगुप्त की सेना को पराजित कर दिया परंतु शशांक ने धोखे से उसकी हत्या कर दी।

राज्यवर्द्धन की हत्या के पश्चात् 606 ई. में हर्षवर्द्धन थानेश्वर का राजा बना। राजा बनते ही उसने शशांक और देवगुप्त से बदला लेने की प्रतिज्ञा की तथा अपनी बहन की सुरक्षा के लिए वह कन्नौज की तरफ बढ़ा। मार्ग में उसे कामरूप के राजा भास्करवर्मन का दूत हंसबेग मिला, जिसने हर्षवर्द्धन के समक्ष अपने राजा की तरफ से मित्रता का प्रस्ताव रखा जिसे हर्ष ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। आगे बढ़ने पर उसे भण्डी से सूचना मिली कि 'राज्यश्री कैद से मुक्त होकर विंध्याचल चली गई है। अतः वह कन्नौज का मार्ग छोड़कर विंध्याचल गया। आचार्य दिवाकर मित्र की सहायता से उसने राज्यश्री को उस समय खोज निकाला, जब वह सती होने जा रही थी। हर्ष उसे वापस कन्नौज लाया। ग्रहवर्मन की हत्या के पश्चात् उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं होने से कन्नौज के मंत्रियों एवं राज्यश्री की सहमति से, हर्ष कन्नौज का भी शासक बन गया। उसकी राजधानी अब थानेश्वर से कन्नौज चली आई। इसके साथ ही कन्नौज अब उत्तरी भारत की राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया।

हर्षवर्द्धन के सैनिक अभियान - हर्षवर्द्धन के शासक बनने के समय तक अनेक नई शक्तियों का उदय हो चुका था। मालवा और गौड़ के राज्य उसके प्रबल राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी थे। इसके अतिरिक्त साम्राज्य विस्तार भी आवश्यक था। अतः शासक बनते ही हर्षवर्द्धन का ध्यान इस ओर गया। तत्कालीन स्रोतों से विदित होता है कि अपने शत्रुओं देवगुप्त और शशांक के विरुद्ध अभियान के अतिरिक्त हर्षवर्द्धन ने अन्य सैनिक अभियान भी किए तथा 'दिग्विजय' की नीति अपनाई, परंतु हर्षवर्द्धन के सैनिक अभियानों का क्रमबद्ध विवरण और उनकी तिथि बहुत स्पष्ट नहीं है। कन्नौज से देवगुप्त और शशांक की सत्ता समाप्त कर हर्षवर्द्धन दिग्विजय के लिए निकला। ह्वेनसांग इस अभियान का वर्णन निम्नलिखित शब्दों में करता है, “पूर्व की ओर बढ़कर उसने उन राज्यों पर आक्रमण किया, जिन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की थी. छह वर्षों तक, जब तक उसने पाँच भारतों के साथ पूर्णतः युद्ध नहीं कर लिया, वह निरंतर लड़ता रहा। चीनी यात्री आगे कहता है कि उसने अपने शासित क्षेत्र को बढ़ाकर सेना बढ़ाई, तथा तीस वर्षों तक शांतिपूर्वक शासन किया। 'पाँच भारत' के अंतर्गत श्रावस्ती, कान्यकुब्ज, गौड़ (बंगाल), मिथिला और उत्कल को रखा गया है। कुछ चीनी स्रोतों से 'पाँच भारत' के स्थान पर 'पाँच गौड़' का उल्लेख हुआ है। शी-यू-की का यह अनुवाद वार्टस ने किया है। बील के अनुसार "वह पूर्व से पश्चिम की ओर उन सभी को जीतता गया जो आज्ञापालक नहीं थे। छह वर्षों के बाद उसने पंच भारतों को जीत लिया। इस प्रकार अपने शासित क्षेत्रों को बढ़ा कर उसने अपनी सेना बढ़ाई। तीस वर्षों के बाद उसने हथियार रखे और सभी जगह शांतिपूर्वक शासन किया। 

इन दोनों विवरणों में विरोधाभास प्रतीत होता है। वार्टस के कथन का आरंभिक भाग और बील के कथन का अंतिम भाग ही हर्षवर्द्धन की ज्ञात गतिविधियों से मेल खाता प्रतीत होता है। चीनी यात्री के विवरण के आधार पर हर्षवर्द्धन के दिग्विजय की निम्नलिखित रूपरेखा प्रस्तुत की जा सकती है-

I.पूर्वी अभियान - राजा बन्ने के बाद हर्षवर्द्धन का मुख्य उद्देश्य शशांक पर विजय प्राप्त करना था। हर्षचरित तथा आर्यमंजुश्रीमूलकल्प से पता चलता है कि हर्ष ने शशांक को पराजित कर अपना अधीनस्थ बनाया। चीनी यात्री कन्नौज और गौड़ के मध्य पड़ने वाले बिहार-बंगाल के अनेक स्थानों का उल्लेख करता है जहाँ वह गया था, लेकिन कपिलवस्तु और मगध के अतिरिक्त अन्य राज्यों या स्थानों की राजनीतिक स्थिति के संबंध में वह मौन है। इसका अर्थ यह लगाया है कि ये सभी स्थान हर्ष के अधीन थे। कन्नौज और बंगाल के मध्य पड़ने वाले राज्यों (स्थानों) की संख्या 17 थी। ये स्थान थे-

(1) अयोध्या
(2) हयमुख,
(3) प्रयाग,
(4) कौशांबी,
(5) विशोक,
(6) श्रावस्ती,
(7) कपिलवस्तु,
(8) रामग्राम,
(9) कुशीनगर,
(10) वाराणसी,
(11) चंचु
(12) वैशाली,
(13) वृज्जि,
(14 ) मगध,
(15) हिरण्यपर्वत, 
(16) चम्पा तथा
(17) कजांगल 

पुण्ड्रवर्द्धन के निकट शशांक से युद्ध हुआ जिसमें वह पराजित हुआ, परंतु हर्षवर्द्धन गौड़पर अधिकार नहीं कर सका। 619-20 ई0 में शशांक की मृत्यु के बाद ही हर्षवर्द्धन गौड़ पर अधिकार कर सका। पूर्व में कामरूप पर हर्षवर्द्धन का प्रभाव पहले ही स्थापित हो चुका था। भास्करवर्मन ने हर्ष की अधीनता स्वीकार कर ली थी।

पूर्वी अभियान के परिणाम स्वपरूप हर्षवर्द्धन को अन्य राज्यों की मित्रता भी प्राप्त हुई। मगध के शासक पूर्णवर्मन ने जिसने मगध पर अधिकार कर लिया था। वह मौखरी वंश का प्रतीत होता है- हर्ष की अधीनता स्वीकार कर ली। हर्ष ने उसे मगध का शासक बना रहने दिया। बाद में माधवगुप्त हर्ष का अधीनस्थ राजा बना। मगध पर इस प्रकार हर्ष का आधिपत्य स्थापित हो गया। चीनी स्रोतों में हर्ष को मगधराज भी कहा गया है। मगध के साथ नालंदा में एक कांसे का विहार भी बनवाया तथा महाविहार को गाँव दान में दिए। उपलब्ध प्रमाणों से अन्य स्थानों पर भी हर्ष के आधिपत्य की पुष्टि होती है। भिटौरा से प्राप्त शिलादित्य के सिक्कों के आधार पर अयोध्या पर उसका अधिकार माना गया है। प्रयाग में तो हर्ष पंचवर्षीय महामोक्ष परिषद् का आयोजन करता ही था। रत्नावली में कौशांबी भुक्ति का भी उल्लेख है। श्रावस्ती भुक्ति का उल्लेख मधुबन अभिलेख में मिलता है। कांजागल में हर्ष ने दरबार किया तथा हिरण्यपर्वत में दो विहारों का निर्माण किया। इस प्रकार कन्नौज से पूर्व में बंगाल तक के सभी क्षेत्रों पर हर्षवर्द्धन का आधिपत्य स्थापित हो गया।

II. पश्चिमी अभियान - पूर्वी अभियान के पश्चात् हर्ष ने कन्नौज के पश्चिम के राज्यों की ओर अपना ध्यान दिया। कन्नौज के पश्चिम सतलज और गंगा के मध्यवर्ती क्षेत्रों पर वर्द्धनों का अधिकार था, परन्तु देवगुप्त और शशांक के आक्रमणों ने वर्द्धनों की सत्ता कमजोर कर दी थी। अतः इस क्षेत्र में हर्ष को पुनः अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना पड़ा। चीनी यात्री इस क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर भी नाम देता है। ये स्थान निम्नलिखित थे-

(i) कपिथा,
(ii) अतरंजीखेड़ा,
(iii) अहिच्छत्र,
(iv) गोवीसान,
(v) ब्रह्मपुर,
(vi) मतिपुर,
(vii) शुभ्र,
(viii) स्थानीश्वर,
(ix) मथुरा,
(x) पारियात्र,
(xi) शतद्रु,
(xii) कुलुट,
(xiii) जालंधर,
(xiv) चीनभुक्ति तथा
(xv) टक्क

ह्वेनसांग इनमें से सिर्फ मतिपुर, मथुरा, परियात्र, जालंधर और ब्रह्मपुर की राजनीतिक स्थिति का स्पष्ट उल्लेख करता है। ये राज्य हर्षवर्द्धन के अधीनस्थ थे। अन्य राज्यों पर हर्षवर्द्धन का सीधा नियंत्रण प्रतीत होता है। इस प्रकार 6 वर्षों के अंदर हर्षवर्द्धन ने पूर्व में उत्तर-पश्चिमी 4 बंगाल में पुण्ड्रवर्धन से लेकर पश्चिम में व्यास तक अपना प्रभाव क्षेत्र स्थापित कर लिया। अब उसने अन्य विजयों की ओर अपना ध्यान दिया।

(III) सिंध की विजय - सिंध राज्य की सीमा हर्ष के राज्य से सटी हुई थी। अतः हर्ष ने उस पर विजय की योजना बनायी। बाणभट्ट के विवरण के अनुसार, हर्षवर्द्धन ने सिंध के राजा का मानमर्दन किया तथा वहाँ से धन वसूला। इससे प्रतीत होता है कि हर्ष ने वर्द्धनवंश के पुराने शत्रु सिंध के राजा पर विजय प्राप्त की। परन्तु चीनी यात्री के विवरण से इसकी पुष्टि नहीं होती। ह्वेनसांग के अनुसार सिंध एक स्वतंत्र और शक्तिशाली राज्य था। अतः हर्ष द्वारा सिंध की विजय निश्चित नहीं है।

(IV) बंगाल -  620 ई. में शशांक की मृत्यु के पश्चात् हर्षवर्द्धन ने पूर्व में पुनः अभियान किया। इस बार उसने बंगाल के एक बड़े क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। समतट, ताम्रलिप्ति, कर्ण-सुवर्ण और पुण्ड्रवर्धन पर उसका अधिकार स्थापित हो गया। बंगाल की विजय के पश्चात् ही हर्ष ने वर्द्धमानकोटि से बांसखेड़ा अभिलेख जारी किया था।.

(V) वल्लभी के साथ युद्ध - वल्लभी का राज्य हर्ष तथा पुलकेशिन दोनों के बीच पड़ता था। दोनों ही इस पर अपना प्रभाव जमाना चाहते थे। हर्ष के राज्य की सीमा वल्लभी से सटी हुई थी। इसलिए

हर्ष उस पर नियंत्रण करना चाहता था। पुनः वल्लभी पर नियंत्रण स्थापित होने से गुर्जर भी उसके प्रभाव में आ जाते तथा उसे चालुक्यों से निबटने में भी सहायता मिलती। अतः हर्षवर्द्धन ने वल्लभी पर आक्रमण करने की योजना बनाई। गुर्जरनरेश दद्वा के नौसारी अभिलेख से ज्ञात होता है कि वल्लभी नरेश ध्रुवसेन द्वितीय हर्ष से पराजित होकर गुर्जरों के पास सहायता के लिए पहुँचा। बाद में उसने हर्ष की अधीनता स्वीकार कर ली। वह हर्ष के सामंत के रूप में शासन करने लगा। हर्ष ने अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया। वल्लभी पर हर्ष की विज्य संभवतः 630 ई. में हुई। कुछ विद्वानों की धारणा है कि हर्ष ने वल्लभी पर विजय प्राप्त नहीं की।

(VI) हर्ष और पुलकेशिन द्वितीय - वल्लभी के साथ युद्ध ने हर्ष और चालुक्य सम्राट पुलकेशिन के बीच युद्ध अनिवार्य कर दिया। दोनों ही महत्वाकांक्षी शासक थे और दोनों एक-दूसरे पर अपना प्रभाव जमाना चाहते थे। उनके राज्य की सीमाएं भी निकट थीं। अतः युद्ध अवश्यंभावी हो गया। ह्वेनसांग के विवरण और एहोल अभिलेख में इस युद्ध का वर्णन है। पुलकेशिन के वंशजों के निरपन, करनुल और तोगरचेदी अभिलेख में भी इसका वर्णन है। यह युद्ध 630 ई. के पश्चात् हुआ। इसमें हर्ष की पराजय हुई। अभिलेख के अनुसार “जिसके चरणकमलों पर अपरिमित समृद्धि से युक्त सामंतों की सेना नतमस्तक होती थी। उस हर्ष का हृदय युद्ध में मारे गए हाथियों के वीभत्स दृश्य को देखकर विगलित हो गया। " ह्वेनसांग भी कहता है कि हर्ष पुलकेशिन पर विजय प्राप्त नहीं कर सका। इस युद्ध के पश्चात् नर्मदा नदी दोनों राज्यों की सीमारेखा निर्धारित हुई।

(VII) मध्य भारत - ह्वेनसांग के विवरण के अनुसार हर्षवर्द्धन ने जेजाकभुंक्ति महेश्वरपुर, गुर्जर और उज्जैन पर भी अपना अधिकार स्थापित किया। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि पूर्वी मार्ग से हर्ष ने दक्षिण के अंदर प्रवेश किया, परन्तु इस धारणा की पुष्टि के लिए स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं।

(VIII) कश्मीर और नेपाल - यद्यपि हर्ष द्वारा कश्मीर और नेपाल की विजय भी संदिग्ध है, तथापि बाणभट्ट और ह्वेनसांग दोनों इन प्रदेशों पर हर्ष का आधिपत्य मानते हैं। दोनों ही हिम प्रदेश पर हर्ष का अधिकार स्वीकार करते हैं। ह्वेनसांग के अनुसार हर्ष ने कश्मीर से गौतम बुद्ध का दाँत लाकर कन्नौज के निकट एक संघाराम में स्थापित किया। नेपाल में हर्ष संवत् (606 ई.) के प्रचलन के आधार पर कुछ विद्वान मानते हैं कि नेपाल पर भी हर्ष का आधिपत्य था।

(IX) उड़ीसा - 640 ई. के आसपास हर्ष ने ओड्र तथा तत्पश्चात् कोगोंडा (दक्षिणी उड़ीसा, गंजाम जिला) और कलिंग पर भी विजय प्राप्त की। इन विजयों के पश्चात् हर्ष 'उत्तरी भारत का स्वामी' बन गया और उसने सकलोत्तरापथनाथ की उपाधि धारण की।

साम्राज्य सीमा - अपने सैनिक अभियानों के परिणामस्वरूप हर्षवर्द्धन ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। के. एम. पाणिक्कर के अनुसार, 'हर्ष के साम्राज्य की सीमा आसाम से कश्मीर तक तथा हिमालय से विंध्याचल तक विस्तृत थी। वह संपूर्ण उत्तरी भारत का स्वामी था। नेपाल पर भी उसका अधिकार था।' हर्ष के साम्राज्य की वास्तविक सीमा अत्यन्त ही विवादास्पद है। कुछ विद्वानों ने उसका साम्राज्य बहुत विस्तृत माना है, तो कुछ ने अत्यन्त संकुचित। सत्य दोनों के बीच है। डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी के विचारानुसार, 'हर्ष के साम्राज्य के अंतर्गत सीधे नियंत्रणवाले क्षेत्र बहुत कम थे, परंतु उसके प्रभाव के अंतर्गत बड़ा क्षेत्र था। कामरूप, कश्मीर, नेपाल और वल्लभी पर उसका प्रभाव था, सीधा नियंत्रण नहीं।' डॉ. आर. सा.० मजूमदार और प्रो. नीहाररंजन राय के अनुसार हर्ष का अधिकार सिर्फ 'मध्यभारत' पर ही था, परंतु उसके प्रभाव क्षेत्र के अंतर्गत पश्चिम में जालंधर से पूर्व में आसाम, दक्षिण में नर्मदा नदी की घाटी एवं वल्लभी में उड़ीसा में गंजाम तक के क्षेत्र और उत्तर में नेपाल और कश्मीर के प्रदेश सम्मिलित थे।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने हेतु उपयोगी स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्राचीन भारत के इतिहास को जानने में विदेशी यात्रियों / लेखकों के विवरण की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- प्राचीन भारत के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की सुस्पष्ट जानकारी दीजिये।
  4. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में आप क्या जानते हैं?
  5. प्रश्न- भास की कृति "स्वप्नवासवदत्ता" पर एक लेख लिखिए।
  6. प्रश्न- 'फाह्यान' पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  7. प्रश्न- दारा प्रथम तथा उसके तीन महत्वपूर्ण अभिलेख के विषय में बताइए।
  8. प्रश्न- आपके विषय का पूरा नाम क्या है? आपके इस प्रश्नपत्र का क्या नाम है?
  9. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - प्राचीन इतिहास अध्ययन के स्रोत
  10. उत्तरमाला
  11. प्रश्न- बिम्बिसार के समय से नन्द वंश के काल तक मगध की शक्ति के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- नन्द कौन थे महापद्मनन्द के जीवन तथा उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- छठी सदी ईसा पूर्व में गणराज्यों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  14. प्रश्न- छठी शताब्दी ई. पू. में महाजनपदीय एवं गणराज्यों की शासन प्रणाली के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  15. प्रश्न- बिम्बिसार की राज्यनीति का वर्णन कीजिए तथा परिचय दीजिए।
  16. प्रश्न- उदयिन के जीवन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  17. प्रश्न- नन्द साम्राज्य की विशालता का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- धननंद और कौटिल्य के सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- धननंद के विषय में आप क्या जानते हैं?
  20. प्रश्न- मगध की भौगोलिक सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
  21. प्रश्न- गणराज्य किसे कहते हैं?
  22. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - महाजनपद एवं गणतन्त्र का विकास
  23. उत्तरमाला
  24. प्रश्न- मौर्य कौन थे? इस वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का उल्लेख कीजिए तथा महत्व पर प्रकाश डालिए।
  25. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी उपलब्धियों और शासन व्यवस्था पर निबन्ध लिखिए|
  26. प्रश्न- सम्राट बिन्दुसार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- कौटिल्य और मेगस्थनीज के विषय में आप क्या जानते हैं?
  28. प्रश्न- मौर्यकाल में सम्राटों के साम्राज्य विस्तार की सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- सम्राट के धम्म के विशिष्ट तत्वों का निरूपण कीजिए।
  30. प्रश्न- भारतीय इतिहास में अशोक एक महान सम्राट कहलाता है। यह कथन कहाँ तक सत्य है? प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- मौर्य वंश के पतन के लिए अशोक कहाँ तक उत्तरदायी था?
  33. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के बचपन का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- अशोक ने धर्म प्रचार के क्या उपाय किये थे? स्पष्ट कीजिए।
  35. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - मौर्य साम्राज्य
  36. उत्तरमाला
  37. प्रश्न- शुंग कौन थे? पुष्यमित्र का शासन प्रबन्ध लिखिये।
  38. प्रश्न- कण्व या कण्वायन वंश को स्पष्ट कीजिए।
  39. प्रश्न- पुष्यमित्र शुंग की धार्मिक नीति की विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- पतंजलि कौन थे?
  41. प्रश्न- शुंग काल की साहित्यिक एवं कलात्मक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  42. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - शुंग तथा कण्व वंश
  43. उत्तरमाला
  44. प्रश्न- सातवाहन युगीन दक्कन पर प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- आन्ध्र-सातवाहन कौन थे? गौतमी पुत्र शातकर्णी के राज्य की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
  46. प्रश्न- शक सातवाहन संघर्ष के विषय में बताइए।
  47. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख के माध्यम से रुद्रदामन के जीवन तथा व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
  48. प्रश्न- शकों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  49. प्रश्न- नहपान कौन था?
  50. प्रश्न- शक शासक रुद्रदामन के विषय में बताइए।
  51. प्रश्न- मिहिरभोज के विषय में बताइए।
  52. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - सातवाहन वंश
  53. उत्तरमाला
  54. प्रश्न- कलिंग नरेश खारवेल के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- कलिंगराज खारवेल की उपलब्धियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  56. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - कलिंग नरेश खारवेल
  57. उत्तरमाला
  58. प्रश्न- हिन्द-यवन शक्ति के उत्थान एवं पतन का निरूपण कीजिए।
  59. प्रश्न- मिनेण्डर कौन था? उसकी विजयों तथा उपलब्धियों पर चर्चा कीजिए।
  60. प्रश्न- एक विजेता के रूप में डेमेट्रियस की प्रमुख उपलब्धियों की विवेचना कीजिए।
  61. प्रश्न- हिन्द पहलवों के बारे में आप क्या जानते है? बताइए।
  62. प्रश्न- कुषाणों के भारत में शासन पर एक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- कनिष्क के उत्तराधिकारियों का परिचय देते हुए यह बताइए कि कुषाण वंश के पतन के क्या कारण थे?
  64. प्रश्न- हिन्द-यवन स्वर्ण सिक्के पर प्रकाश डालिए।
  65. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - भारत में विदेशी आक्रमण
  66. उत्तरमाला
  67. प्रश्न- गुप्तों की उत्पत्ति के विषय में आप क्या जानते हैं? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- काचगुप्त कौन थे? स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- प्रयाग प्रशस्ति के आधार पर समुद्रगुप्त की विजयों का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- चन्द्रगुप्त (द्वितीय) की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से लिखिए।
  71. प्रश्न- गुप्त शासन प्रणाली पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  72. प्रश्न- गुप्तकाल की साहित्यिक एवं कलात्मक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- गुप्तों के पतन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- गुप्तों के काल को प्राचीन भारत का 'स्वर्ण युग' क्यों कहते हैं? विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- रामगुप्त की ऐतिहासिकता पर विचार व्यक्त कीजिए।
  76. प्रश्न- गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के विषय में बताइए।
  77. प्रश्न- आर्यभट्ट कौन था? वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- स्कन्दगुप्त की उपलब्धियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  79. प्रश्न- राजा के रूप में स्कन्दगुप्त के महत्व की विवेचना कीजिए।
  80. प्रश्न- कुमारगुप्त पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- कुमारगुप्त प्रथम की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- गुप्तकालीन भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- कालिदास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  84. प्रश्न- विशाखदत्त कौन था? वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- स्कन्दगुप्त कौन था?
  86. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है? उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  87. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - गुप्त वंश
  88. उत्तरमाला
  89. प्रश्न- दक्षिण के वाकाटकों के उत्कर्ष का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  90. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - वाकाटक वंश
  91. उत्तरमाला
  92. प्रश्न- हूण कौन थे? तोरमाण के जीवन तथा उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- हूण आक्रमण के भारत पर क्या प्रभाव पड़े? स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- गुप्त साम्राज्य पर हूणों के आक्रमण का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  95. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - हूण आक्रमण
  96. उत्तरमाला
  97. प्रश्न- हर्ष के समकालीन गौड़ नरेश शशांक के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  98. प्रश्न- हर्ष का समकालीन शासक शशांक के साथ क्या सम्बन्ध था? मूल्यांकन कीजिए।
  99. प्रश्न- हर्ष की सामरिक उपलब्धियों के परिप्रेक्ष्य में उसका मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- सम्राट के रूप में हर्ष का मूल्यांकन कीजिए।
  101. प्रश्न- हर्षवर्धन की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिये?
  102. प्रश्न- हर्ष का मूल्यांकन पर टिप्पणी कीजिये।
  103. प्रश्न- हर्ष का धर्म पर टिप्पणी कीजिये।
  104. प्रश्न- पुलकेशिन द्वितीय पर टिप्पणी कीजिये।
  105. प्रश्न- ह्वेनसांग कौन था?
  106. प्रश्न- प्रभाकर वर्धन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  107. प्रश्न- गौड़ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - वर्धन वंश
  109. उत्तरमाला
  110. प्रश्न- मौखरी वंश की उत्पत्ति के विषय में बताते हुए इस वंश के प्रमुख शासकों का उल्लेख कीजिए।
  111. प्रश्न- मौखरी कौन थे? मौखरी राजाओं के जीवन तथा उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  112. प्रश्न- मौखरी वंश का इतिहास जानने के साधनों का वर्णन कीजिए।
  113. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - मौखरी वंश
  114. उत्तरमाला
  115. प्रष्न- परवर्ती गुप्त शासकों का राजनैतिक इतिहास बताइये।
  116. प्रश्न- परवर्ती गुप्त शासकों के मौखरी शासकों से किस प्रकार के सम्बन्ध थे? स्पष्ट कीजिए।
  117. प्रश्न- परवर्ती गुप्तों के इतिहास पर टिप्पणी लिखिए।
  118. प्रश्न- परवर्ती गुप्त शासक नरसिंहगुप्त 'बालादित्य' के विषय में बताइये।
  119. वस्तुनिष्ठ प्रश्न - परवर्ती गुप्त शासक
  120. उत्तरमाला

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